आचार्य लोकेश बडोनी मधुर
पुरोला उतरकाशी
रामा सिंराई कि राजधानी ग्राम गुन्दियाट गांव में चल रही श्रीमद्भागवत कथा की समापन दिवस की कथा सुनाते हुए हिमालय के सुप्रसिद्ध भागवत कथा वाचक आचार्य शिवप्रसाद नौटियाल जी ने भगवान श्री कृष्ण की बाल लीलाओं व दत्तात्रेय जी के 24 गुरूओं की कथा सुनाते हुए मनुष्य को जीवन भर शिक्षा ग्रहण करते रहना चाहिए । हमारी सनातन परम्परा में मनुष्य के जीवन को भौतिक, नैतिक ,और आध्यात्मिक दृष्टि से उन्नत करने के लिए धर्म, अर्थ,काम और- मोक्ष इन चारों पुरुषार्थों की चर्चा की गई है । धर्म जो मानव सभ्यता का मूल है ।शिक्षा में उसकी उपेक्षा हो रही है ,जबकि धर्म ही मनुष्य को क्रियाशील सहयोगी जीवन बिताने के लिए प्रोत्साहित करता है । आज इस धरती पर सुख शांति और आनंद के लिए सर्वत्र मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान राम की प्राण प्रतिष्ठा और उनकी उपासना करने की आवश्यकता है। स्वर्ग से सुंदर सत्य की भूमि अयोध्या में श्रीराम देश की आत्मा है। राजा सागर ,भागीरथ, दिलीप ,हरिश्चंद्र ,और राम की जन्म भूमि होने का सौभाग्य इसे मिला है, यहां देवत्व का अवतरण होता है । भगवान श्रीराम की प्रतिष्ठा से हर भारतीय का स्वाभिमान जगा है, राम ने कर्तव्यों के पालन के सहारे सभी के अधिकारों को सुरक्षित करने का मार्ग दिखाया राम सदा अपने कर्तव्य के पालन पर अड़े रहे ।
आचार्य श्री ने भगवान के विवाह व सुदामा चरित की पावन कथा को सुनाते हुए कहा है मनुष्य की जीवन की पूंजी संतुष्टि होती है जीवन में हर क्षण हर पल संतुष्ट रहना चाहिए , और जो व्यक्ति असंतुष्ट रहता है वह धीरे-धीरे नष्ट हो जाता है । सुदामा जी के पास प्रभु नाम की संपत्ति थी , जिसके आगे संसार की अनंत संपत्तियां तुच्छ लगती है। आचार्य श्री ने कहा। संपत्ति को संपत्ति नहीं कहते हैं ।और विपत्ति को विपत्ति नहीं कहते ।भगवान को भूल जाना सबसे बड़ी विपत्ति है ।और भगवान की हमेशा याद बनी रहे ।सबसे बड़ी संपत्ति है ।
आचार्य श्री ने भगवान के विवाह व सुदामा चरित की पावन कथा को सुनाते हुए कहा है मनुष्य की जीवन की पूंजी संतुष्टि होती है जीवन में हर क्षण हर पल संतुष्ट रहना चाहिए , और जो व्यक्ति असंतुष्ट रहता है वह धीरे-धीरे नष्ट हो जाता है । सुदामा जी के पास प्रभु नाम की संपत्ति थी , जिसके आगे संसार की अनंत संपत्तियां तुच्छ लगती है। आचार्य श्री ने कहा। संपत्ति को संपत्ति नहीं कहते हैं ।और विपत्ति को विपत्ति नहीं कहते ।भगवान को भूल जाना सबसे बड़ी विपत्ति है ।और भगवान की हमेशा याद बनी रहे ।सबसे बड़ी संपत्ति है ।
आचार्य श्री ने कहा आज भारत को अध्यात्म,योग, गुरुकुल शिक्षा पद्धति से सम्पूर्ण मानवता का विकास से ही सम्भव है। आचार्य श्री ने कहा भागवत कथा श्रवण से, भक्ति ज्ञान वैराग्य तपस्या सम्भव है। राजा परीक्षित की कथा सुनाते हुए कहा कि श्रृंगी ऋषि ने राजा परीक्षित को श्राप दिया था कि आज से सातवें दिन तक्षक नाग के डसने से तुम्हारी मृत्यु होगी । जब राजा को अपनी मृत्यु का उपाय नहीं सूझा, तो शुकदेव जी महाराज से भेंट हुई उन्ही के द्वारा भागवत कथा श्रवण से अकाल मृत्यु टल गई , और भागवत कथा से मुक्ति प्राप्त हुई । कथा मण्डप में 33 कोटी देवी देवता सहित श्री कपिल मुनि महाराज , श्री कालिगनाग महाराज व श्री शिकारू नाग महाराज, की देव डोलियां। ब्राह्मण देवता वेद पाठ करते हुए यज्ञ की शोभा बढ़ा रहे हैं। कथा में मण्डपाचार्य जमुना प्रसाद विजलवाण, पंण्डित आचार्य गणपति बडोनी, आचार्य नितिन नोटियाल, पंण्डित अनिल विजल्वाण, पंण्डित शुभम सेमवाल, संगीताचार्य रामश्वरूप थपलियाल, तबला वादक, शुशील उनियाल,वंशीवादक राजेश पैन्यूली आदि उपस्थित थे ।
आचार्य श्री ने
कथा के मुख्य यजमान चद्रमणी नोटियाल व पूरणभक्त नोटियाल , मातुल्य पक्ष बडोनी बन्धु सहित समस्त नौटियाल बन्धु व हजारों की संख्या में ग्राम व क्षेत्रवासी को शुभाषिस देते हुए सम्पूर्ण विश्व के कल्याण की मंगलकामना करते हुए भागवत कथा को विराम दिया। तथा मुख्य यजमानों द्वारा देव डोलियों को विदा करते हुए भण्डारे का आयोजन कर सभी श्रोताओं ने प्रसाद ग्रहण किया
आचार्य श्री ने
कथा के मुख्य यजमान चद्रमणी नोटियाल व पूरणभक्त नोटियाल , मातुल्य पक्ष बडोनी बन्धु सहित समस्त नौटियाल बन्धु व हजारों की संख्या में ग्राम व क्षेत्रवासी को शुभाषिस देते हुए सम्पूर्ण विश्व के कल्याण की मंगलकामना करते हुए भागवत कथा को विराम दिया। तथा मुख्य यजमानों द्वारा देव डोलियों को विदा करते हुए भण्डारे का आयोजन कर सभी श्रोताओं ने प्रसाद ग्रहण किया