By using this site, you agree to the Privacy Policy and Terms of Use.
Accept
Uttarakhand Ab TakUttarakhand Ab TakUttarakhand Ab Tak
Notification Show More
Font ResizerAa
  • उत्तराखंड
  • राजनीति
  • देश-विदेश
  • पर्यटन
  • क्राइम
  • संस्कृति
  • यूथ
  • शिक्षा
  • सामाजिक
  • मनोरंजन
  • स्पोर्ट्स
  • स्वास्थ्य
  • वीडियो
Reading: क्राइम लिटरेचर फेस्टिवल जैसे मंच न्याय, जवाबदेही और सत्य के मुद्दों पर समाज को सोचने के लिए प्रेरित करने में निभाते हैं अहम भूमिका : राज्यपाल
Share
Font ResizerAa
Uttarakhand Ab TakUttarakhand Ab Tak
  • उत्तराखंड
  • राजनीति
  • देश-विदेश
  • पर्यटन
  • क्राइम
  • संस्कृति
  • यूथ
  • शिक्षा
  • सामाजिक
  • मनोरंजन
  • स्पोर्ट्स
  • स्वास्थ्य
  • वीडियो
Search
  • उत्तराखंड
  • राजनीति
  • देश-विदेश
  • पर्यटन
  • क्राइम
  • संस्कृति
  • यूथ
  • शिक्षा
  • सामाजिक
  • मनोरंजन
  • स्पोर्ट्स
  • स्वास्थ्य
  • वीडियो
Have an existing account? Sign In
Follow US
उत्तराखंडदेहरादून

क्राइम लिटरेचर फेस्टिवल जैसे मंच न्याय, जवाबदेही और सत्य के मुद्दों पर समाज को सोचने के लिए प्रेरित करने में निभाते हैं अहम भूमिका : राज्यपाल

Lokesh Badoni
Last updated: December 12, 2025 2:38 pm
Lokesh Badoni Published December 12, 2025
Share
SHARE

उत्तराखंड के राज्यपाल गुरमीत सिंह ने किया तीसरे संस्करण का उद्घाटन

देहरादून : क्राइम लिटरेचर फेस्टिवल ऑफ इंडिया का तीसरा संस्करण शुक्रवार को हयात सेंट्रिक, देहरादून में शुरू हुआ, जिसने अपराध, न्याय और समाज पर गहन विचार-विमर्श, साहसिक चर्चाओं और प्रभावशाली संवादों से भरे तीन दिनों की शुरुआत करी।

उद्घाटन समारोह की शुरुआत उत्तराखंड के राज्यपाल लेफ्टिनेंट जनरल गुरमीत सिंह (से.नि.) द्वारा फेस्टिवल को औपचारिक रूप से उद्घाटित करने के साथ हुई। उनके साथ विशिष्ट अतिथि एवं प्रसिद्ध फिल्मकार केतन मेहता, फेस्टिवल चेयरमैन एवं पूर्व डीजीपी उत्तराखंड अशोक कुमार, फेस्टिवल डायरेक्टर एवं पूर्व डीजी उत्तराखंड आलोक लाल, फेस्टिवल सचिव रणधीर के अरोड़ा और डीसीएलएस के मुख्य समन्वयक प्रवीण चंदोक उपस्थित रहे।

उद्घाटन समारोह में संबोधित करते हुए राज्यपाल ने कहा कि क्राइम लिटरेचर फेस्टिवल जैसे मंच न्याय, जवाबदेही और सत्य के मुद्दों पर समाज को सोचने के लिए प्रेरित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।

राज्यपाल गुरमीत सिंह ने कहा, “अपराध कई मायनों में हम सभी की कहानी है। यह उत्सव देहरादून में तीसरी बार लौट रहा है और भगवान शिव के त्रिशूल का आशीर्वाद समेटे सत्य और स्पष्टता की ओर हमारा मार्गदर्शन करता है। पुलिस और जस्टिस जैसे शब्दों में ‘आइस’ उस शांति का प्रतीक है, जो समाज में पनप रहे क्रोध और आक्रोश को शांत करने के लिए आवश्यक है। जब हमारे भीतर नकारात्मक प्रवृत्तियाँ जन्म लेती हैं—जब हमारे अंदर का रावण उठता है—तो हमारे भीतर का राम भी जागृत होना चाहिए, अन्यथा यह अनियंत्रित क्रोध विनाश का कारण बन सकता है। अपराध को रोकने की शुरुआत हमारे भीतर के इसी संघर्ष को पहचानने और नियंत्रित करने से होती है।”

आगे बोलते हुए उन्होंने कहा, “यह तीन दिवसीय उत्सव अपराध के पूरे परिदृश्य—न्याय, कानून प्रवर्तन, अराजकता, सामाजिक व्यवहार और आपराधिक क्रियाओं के पीछे की मनोविज्ञान—को समेटता है। यहां साझा की गई कहानियाँ आने वाली पीढ़ियों के लिए मूल्यवान सीख साबित होंगी। नशा-उपयोग और साइबर अपराध आज की दो सबसे गंभीर चुनौतियाँ हैं, और समाज को एक एंटी-क्राइम वातावरण बनाने के लिए तैयार करना अत्यंत आवश्यक है।”

राज्यपाल ने कहा, “मुझे गर्व है कि यह उत्सव देहरादून में आयोजित हो रहा है—जो भारत की साहित्यिक राजधानी माना जाता है—और एकमात्र ऐसा शहर है जिसने अपराध को समझने और उससे सीख निकालने की चुनौती को स्वीकार किया है। आप अपराध की हजारों कहानियाँ सुन सकते हैं, लेकिन अंत में केवल सत्य की ही जीत होती है—और यही वह स्थान है जहां अपराध साहित्य का असली उद्देश्य निहित है।”

कार्यक्रम के उद्घाटन दिवस पर सभी का स्वागत करते हुए फेस्टिवल के चेयरमैन एवं पूर्व डीजीपी उत्तराखंड अशोक कुमार ने कहा, “यह हमारे क्राइम लिटरेचर फेस्टिवल का तीसरा संस्करण है—एक अद्वितीय शैली-आधारित आयोजन और भारत में अपने आप में एकमात्र उत्सव। अगले तीन दिनों में हम नशा-निरोध, सड़क दुर्घटनाएँ, महिलाओं की सुरक्षा, साइबर अपराध और समाज को गहराई से प्रभावित करने वाले कई अन्य मुद्दों पर अर्थपूर्ण चर्चा करेंगे।”

फेस्टिवल की शुरुआत इसकी सबसे चर्चित सत्रों में से एक “मिर्च मसाला टू मांझी: केतन मेहता’स लेंस ऑन इनजस्टिस” से हुई, जिसमें ‘मांझी’, ‘मिर्च मसाला’ और ‘मंगल पांडे’ जैसी फिल्मों के लिए जाने जाते प्रसिद्ध निर्देशक केतन मेहता ने पूर्व डीजी उत्तराखंड आलोक लाल के साथ एक ज्ञानवर्धक संवाद किया। दोनों ने मिलकर चर्चा की कि वास्तविक संघर्ष, प्रतिरोध और मानवीय साहस किस प्रकार सिनेमा में अभिव्यक्त होते हैं और किस तरह फिल्में समाज का दर्पण बन जाती हैं।

दर्शकों को संबोधित करते हुए फिल्म निर्माता केतन मेहता ने कहा, “अपराध हमेशा से मेरे लिए सबसे आकर्षक विधाओं में से एक रहा है। सिनेमा, साहित्य और रंगमंच की शुरुआत से ही अपराध सबसे प्रभावशाली विषयों में रहा है। मेरी कई फिल्में—चाहे मंगल पांडे हो, रंग रसिया हो या मिर्च मसाला—अपराध और मानवीय संघर्ष के अलग-अलग आयामों को तलाशती हैं। एक व्यक्ति अपराध की ओर क्यों मुड़ता है, इसके कारण अनेक हो सकते हैं, लेकिन मूल रूप से मनुष्य स्वयं संघर्षों से भरा हुआ प्राणी है। हमारे भीतर लगातार एक द्वंद्व चलता रहता है, और इस आंतरिक संघर्ष को संभालना और नियंत्रित करना ही, कई मायनों में, जीवन का सार है।

अवसर पर बोलते हुए फेस्टिवल डायरेक्टर एवं पूर्व डीजी उत्तराखंड आलोक लाल ने कहा, “यह दुनिया का एकमात्र उत्सव है जो केवल अपराध विधा को समर्पित है, और इसी मायने में यह वास्तव में एक मार्गदर्शक पहल है। मनोवैज्ञानिकों का कहना है कि हम सभी के भीतर कुछ नकारात्मक प्रवृत्तियाँ—क्रोध, प्रतिशोध या ऐसी प्रतिक्रियाएँ देने की प्रवृत्ति—मौजूद रहती हैं जो दूसरों को नुकसान पहुँचा सकती हैं। केवल कुछ लोग इन प्रवृत्तियों को क्रियान्वित करते हैं और वे अंततः कानून की पकड़ में आकर परिणाम भुगतते हैं। यह उत्सव न केवल वास्तविक अपराधों, बल्कि काल्पनिक अपराधों की भी पड़ताल करता है, जिससे यह अपराध साहित्य पर चर्चा का एक विशिष्ट और ज्ञानवर्धक मंच बन जाता है।

शाम का दूसरा सत्र “द एनफोर्सर – एन आईपीएस ऑफिसर’स वॉर ऑन क्राइम इन इंडिया’स बैडलैंड्स” रहा, जिसमें पूर्व डीजीपी उत्तर प्रदेश प्रशांत कुमार, पूर्व डीजीपी उत्तराखंड अशोक कुमार और लेखक अनुरुध्य मित्रा ने प्राची कांडवाल के साथ बातचीत की। इस चर्चा में भारत के अपराध परिदृश्य की वास्तविक जमीनी चुनौतियों और अनुभवों को साझा किया गया।

दून कल्चरल एंड लिटरेरी सोसाइटी (डीसीएलएस) द्वारा आयोजित यह फेस्टिवल एक बार फिर देहरादून को साहित्यिक और बौद्धिक संवाद का प्रमुख केंद्र स्थापित करता है। तीन दिवसीय यह फेस्टिवल सभी के लिए खुला है, जिसमें भूमि घोटालों, नशीले पदार्थों, महिला सुरक्षा, डीपफेक्स, साइबर धोखाधड़ी, सीरियल किलर्स, बुलिंग और विभिन्न भाषाओं में उभरते क्राइम लेखन जैसे महत्वपूर्ण विषयों पर विस्तृत सत्र आयोजित किए जाएंगे।

प्रशांत कुमार, पूर्व डीजीपी उत्तर प्रदेश

“विकास दुबे कोई आम अपराधी नहीं था; उसने बिकरू कांड को एक बड़े और सुनियोजित तरीके से अंजाम दिया था। वह वही अपराधी था जिसने थाने के अंदर एक मंत्री की हत्या कर दी थी। वर्षों तक व्यवस्था और पुलिस दोनों ही ऐसे अपराधियों को सहने के लिए मजबूर थे। लेकिन इस मामले में जांच पूरी तरह प्रोटोकॉल के अनुसार की गई।

किसी भी पुलिस ऑपरेशन के दौरान यह कोई नहीं जानता कि गोली किसे लगेगी। पुलिस कार्रवाई भी करेगी और जांच भी—यही कानून है। उत्तर प्रदेश में असली बदलाव तब आया, जब सिस्टम ने अपराध और अपराधियों के प्रति ‘ज़ीरो टॉलरेंस’ का स्पष्ट दृष्टिकोण अपनाया। जब दुनिया की सबसे बड़ी सिविल पुलिस फोर्स, जो की उत्तर प्रदेश की है, जब वो 360 डिग्री परिवर्तन से गुजरती है, तो उसका प्रभाव पूरे सिस्टम में दिखता ही है।”

अशोक कुमार, पूर्व डीजीपी उत्तराखंड

“सिनेमा में अपराधियों को इस कदर महिमामंडित किया जाता है कि कई बार अपराधी हीरो बनने लगते हैं, और यह समाज के लिए बेहद दुखद है। हमें किसी भी रूप में अपराधियों को ग्लैमराइज़ नहीं करना चाहिए। इसके बजाय, हमें असली पुलिस अधिकारियों की कहानियों पर फिल्में बनानी चाहिए और उनकी बहादुरी को सामने लाना चाहिए।

विकास दुबे मामले की कार्रवाई ने समाज में एक बहुत बड़ा संदेश दिया। यह एक अति आवश्यक कदम था। तथाकथित मानवाधिकार कार्यकर्ता पुलिसकर्मियों की हत्या पर सवाल नहीं उठाते; वे सिर्फ एनकाउंटर पर सवाल उठाते हैं। उन्हें पुलिस और उनके बलिदानों पर भी बात करनी चाहिए।”

अनिरुद्ध्या मित्रा, The Enforcer के लेखक

“मेरा बैकग्राउंड क्राइम रिपोर्टिंग का है, इसलिए The Enforcer लिखते समय मैंने कहानी को हर कोण से देखने की कोशिश की। लोग अक्सर मुझे ताने देते थे कि मैं पुलिस का पक्ष लेता हूं, लेकिन मेरी प्रतिबद्धता हमेशा एक संतुलित कहानी प्रस्तुत करने की रही है।

मुझे प्रशांत कुमार में केवल एक वरिष्ठ आईपीएस अधिकारी नहीं मिले, बल्कि एक इंसान—एक पिता, एक लीडर—जो वर्दी के पीछे रहते हैं।

 

You Might Also Like

भारतीय जनता पार्टी की प्रदेश महामंत्री दीप्ति रावत भारद्वाज के सीमांत जनपद उत्तरकाशी के मोरी के दुरस्त गांव कासला पहुंच कर प्राण प्रतिष्ठा समारोह में प्रतिभाग कर ग्रामीण महिलाओं से किया संवाद

स्पिक मैके द्वारा देहरादून के विद्यालयों में कुचिपुड़ी कार्यशालाएं आयोजित

डीआईटी विश्वविद्यालय के 9वें दीक्षांत समारोह में 1257 छात्रों को मिली उपाधि

हर्षल फाउंडेशन द्वारा यह शिविर मानवीय संवेदनशीलता, करुणा और सामाजिक उत्तरदायित्व का उत्कृष्ट उदाहरण : राज्यपाल

मानव अधिकार संरक्षण दिवस पर 13 संस्थाओं को किया सम्मानित

Share This Article
Facebook Twitter Whatsapp Whatsapp Telegram Email Print
Leave a comment

Leave a Reply Cancel reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Recent Posts

  • भारतीय जनता पार्टी की प्रदेश महामंत्री दीप्ति रावत भारद्वाज के सीमांत जनपद उत्तरकाशी के मोरी के दुरस्त गांव कासला पहुंच कर प्राण प्रतिष्ठा समारोह में प्रतिभाग कर ग्रामीण महिलाओं से किया संवाद
  • स्पिक मैके द्वारा देहरादून के विद्यालयों में कुचिपुड़ी कार्यशालाएं आयोजित
  • डीआईटी विश्वविद्यालय के 9वें दीक्षांत समारोह में 1257 छात्रों को मिली उपाधि
  • ओज़ेम्पिक – दुनिया भर में सबसे ज़्यादा प्रिस्क्राइब की जाने वाली जीएलपी-1 दवा अब भारत में उपलब्ध
  • हर्षल फाउंडेशन द्वारा यह शिविर मानवीय संवेदनशीलता, करुणा और सामाजिक उत्तरदायित्व का उत्कृष्ट उदाहरण : राज्यपाल

Recent Comments

No comments to show.

Categories

  • उत्तराखंड
  • राजनीति
  • देश-विदेश
  • पर्यटन
  • क्राइम
  • संस्कृति
  • शिक्षा
"उत्तराखंड अब तक" हिंदी समाचार वेबसाइट है जो उत्तराखंड से संबंधित ताज़ा खबरें, राजनीति, समाज, और संस्कृति को लेकर प्रस्तुत करती है।
Quick Link
  • उत्तराखंड
  • देश-विदेश
  • राजनीति
  • संस्कृति
  • स्वास्थ्य
Address: New Colony, Ranjawala, Dehradun – 248001
Phone: +91 9760762885
Email:
uttarakhandabtaknews@gmail.com
© Uttarakhand Ab Tak. All Rights Reserved | Developed By: Tech Yard Labs
Welcome Back!

Sign in to your account

Lost your password?