सम्पादकीय
*सिद्धगन्धर्वयक्षाद्यैरसुरैरमरैरपि।*
*सेव्यमाना सदा भूयात्*
*सिद्धिदा सिद्धिदायिनी।।*
महामाया जगदम्बा के विभिन्न स्वरूपों में मुख्यत: नौ स्वरूपों की आराधना नवरात्रि के पावन अवसर पर भक्तों के द्वारा की जाती है। इस नौ स्वरूपों में महानवमी के दिन नवम् शक्ति “सिद्धिदात्री” की आराधना भक्तों द्वारा की जाती है। सिद्धिदात्री माँ की उपासना पूर्ण कर लेने के बाद भक्तों और साधकों की लौकिक, पारलौकिक सभी प्रकार की कामनाओं की पूर्ति हो जाती है। सिद्धिदात्री माँ के कृपापात्र भक्त के भीतर कोई ऐसी कामना शेष बचती ही नहीं है, जिसे वह पूर्ण करना चाहे। वह सभी सांसारिक इच्छाओं, आवश्यकताओं और स्पृहाओं से ऊपर उठकर मानसिक रूप से माँ भगवती के दिव्य लोकों में विचरण करता हुआ उनके कृपा-रस-पीयूष का निरंतर पान करता हुआ, विषय-भोग-शून्य हो जाता है।
माँ भगवती का परम सान्निध्य ही उसका सर्वस्व हो जाता है इस परम पद को पाने के बाद उसे अन्य किसी भी वस्तु की आवश्यकता नहीं रह जाती है। माँ के चरणों का यह सान्निध्य प्राप्त करने के लिए भक्त को निरंतर नियमनिष्ठ रहकर उनकी उपासना करने का नियम कहा गया है। ऐसा माना गया है कि माँ भगवती का स्मरण, ध्यान, पूजन, हमें इस संसार की असारता का बोध कराते हुए वास्तविक परम शांतिदायक अमृत पद की ओर ले जाने वाला है। विश्वास किया जाता है कि इनकी आराधना से भक्त को अणिमा, लधिमा, प्राप्ति, प्राकाम्य, महिमा, ईशित्व, सर्वकामावसायिता, दूर श्रवण, परकामा प्रवेश, वाकसिद्ध, अमरत्व भावना सिद्धि आदि समस्त सिद्धियों नव निधियों की प्राप्ति होती है। ऐसा कहा गया है कि यदि कोई इतना कठिन तप न कर सके तो अपनी शक्तिनुसार जप, तप, पूजा-अर्चना कर माँ की कृपा का पात्र बन सकता ही है।
आज मनुष्य अनेक विधि से माॅ भगवती का पूजन करने के बाद भी यदि दु:खी है तो उसका कारण यही है कि मनुष्य पूजन तो करता है परंतु यम – नियम एवं संयम का पालन नहीं कर पा रहा है, बिना नियम पालन किये साधक को कोई भी सिद्धि नहीं प्राप्त हो सकती है। प्रत्येक नारी मैया “सिद्धिदात्री” स्वरूपा है आवश्यकता है अपना दृष्टिकोण बदलने की, जिस प्रकार माँ सिद्धिदात्री अपने भक्तों को सभी सिद्धियाँ सारे सुख प्रदान करती हैं उसी प्रकार घर घर में रहने वाली अपनी गृहिणी के प्रति यदि पुरुष वर्ग समर्पित भाव से रहे तो अनेक सांसारिक सुखों के साथ सारे ऐश्वर्य पा सकता है।
मैया “सिद्धिदात्री” का पूजन करके सिद्धियाँ तभी प्राप्त हो सकती हैं जब गृहलक्ष्मी के रूप में घर में विराजमान नारीशक्ति के प्रति समर्पण होगा।