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श्रावण पूर्णिमा/संस्कृत दिवसपुरोला उतरकाशीभारत में हर वर्ष सावन पूर्णिमा के अवसर पर संस्कृत दिवस मनाया जाता है. सावन पूर्णिमा पर ऋषियों का स्मरण एवं पूजा की जाती है।ऋषि ही संस्कृत साहित्य के आदि स्त्रोत हैं इसलिए सावन (श्रावण) पूर्णिमा को ऋषि पर्व एवं संस्कृत दिवस के रूप में मनाया जाता है।संस्कृत भाषा भारत की सबसे प्राचीन भाषा है। संस्कृत भाषा से ही दूसरी भाषाओं की उत्पति हुई हैं, इसलिए इसे सभी भाषाओं की जननी कहा जाता है।भारत में सबसे पहले संस्कृत भाषा बोली जाती थी। उत्तराखण्ड राज्य की यह एक आधिकारिक भाषा है। प्राचीन ग्रंथ, वेद, पुराण आदि की रचना संस्कृत में ही हुई है।महाभारत काल में वैदिक संस्कृत का प्रयोग किया जाता था। आज के समय में सबसे कम बोली जाने वाली भाषा संस्कृत है, लेकिन इस भाषा के महत्व को हर कोई जानता है। इसके द्वारा ही दूसरी भाषा को सीखने-बोलने में मदद मिलती है।संस्कृत दिवस को पहली बार वर्ष १९६९ में मनाया गया था। संस्कृत दिवस इसलिए मनाया जाता है, ताकि लोग संस्कृत भाषा के प्रति जागरूक हो सके। यह सभी भारतीय भाषाओं की माँ है साथ ही भारत में बोली जाने वाली सबसे प्राचीन भाषा है।संस्कृत दिवस का मुख्य उद्देश्य है, संस्कृत को बढ़ावा देना और आम जनता को संस्कृत के प्रति शिक्षित करना। संस्कृत समृद्ध भारतीय सांस्कृतिक विरासत का प्रतीक है।संस्कृत दिवस को स्कूल, कॉलेज, राज्य तथा जिला स्तर पर मनाया जाता हैं। इस अवसर पर संस्कृत कवि सम्मेलन, लेखक गोष्ठी, छात्रों का भाषण और श्लोकोच्चारण प्रतियोगिता आदि का आयोजन किया जाता है, जिसके माध्यम से संस्कृत के विद्यार्थियों, कवियों तथा लेखकों को उचित मंच प्राप्त होता है और साथ ही वैदिक भाषा को बढ़ावा देने के लिए संस्कृत दिवस के दिन विभिन्न गतिविधियां, संगोष्ठी और कार्यशालाएं आयोजित की जाती हैं।