सम्पादकीय
अधिकांश सभ्य शक्तिशाली होकर प्रायः लोग असभ्य हो जाते हैं। वे समझते हैं, बस अब तो हम ही धरती के राजा हैं। वे यह नहीं विचार करते, कि संसार में और लोग भी रहते हैं। न तो यह जमीन मकान आदि संपत्ति उनकी है, न उनके दादा परदादा की। वे सब सारी संपत्ति यहीं छोड़कर चले गए। और ये आजकल के शक्तिशाली लोग भी सारी संपत्ति यहीं छोड़कर चले जाएंगे। इस बात पर वे विचार नहीं करते। “यदि ऐसा विचार करते होते, तो वे अभिमान नहीं करते। और दूसरों को मक्खी मच्छर जैसा कमजोर समझकर उन पर अन्याय अत्याचार नहीं करते।
परंतु दुर्भाग्य की बात यही है, कि थोड़ी सी शक्ति आते ही वे लोग उस शक्ति के नशे में अंधे जैसे हो जाते हैं। उन्हें ईश्वर, कर्मफल, पुनर्जन्म, न्याय, राजा प्रजा कुछ नहीं दिखता। सब अपनी मनमानी करते जाते हैं। ऐसा करना उचित नहीं है।
वे लोग बुद्धिमान और सभ्य कहलाते हैं, जो अनेक प्रकार की शक्तियां प्राप्त करके भी दूसरों के साथ ठीक ठीक न्यायपूर्ण व्यवहार करते हैं। किसी पर अन्याय एवं अत्याचार नहीं करते।यह सभ्यता कहलाती है। यह बहुत उत्तम गुण है।
और इससे भी उत्तम गुण यह है, कि *”सभ्यता से व्यवहार करते हुए भी वे अभिमान नहीं करते।अपनी विनम्रता को बनाए रखते हैं। कभी-कभी दूसरा व्यक्ति उनके साथ भले ही कोई दुर्व्यवहार कर ले, फिर भी वे अपनी सभ्यता और विनम्रता को नहीं छोड़ते। तब भी वे सम्मान पूर्वक व्यवहार ही करते हैं। यह तो बहुत ही उत्तम गुण है। सर्वोत्तम गुण है।
हमें और आप सब को भी ऐसे उत्तम गुणों को अपनाना चाहिए। सभ्यता से ही व्यवहार करना चाहिए और इसको लगातार बनाए रखना चाहिए। अपनी विनम्रता को कभी छोड़ना नहीं चाहिए।
हां, जैसे सड़क पर सामने से ट्रक आता हुआ देखकर आप साइड में हट जाते हैं, उससे टकराते नहीं। क्योंकि उससे टकराने में कोई लाभ नहीं होता, बल्कि हानि ही होती है।” “इसी प्रकार से जीवन में भी यदि कोई व्यक्ति अतिदुष्ट मिल जाए, तो उससे दूर हो जाना तथा उससे अपनी रक्षा करना उचित है। व्यर्थ में उस मूर्ख एवं दुष्ट व्यक्ति से टकराने से कोई लाभ नहीं होता, बल्कि हानि ही होती है।यदि आप भी इस प्रकार का व्यवहार करें, तो आपका जीवन भी सफल एवं आनन्दमय होगा।