सम्पादकीय
अपनी बात
कुछ लोग अपने घर के दरवाजे पर ऐसा लिखते हैं, शुभ लाभ वे समझते हैं कि दरवाजे पर ऐसा लिख देने से हमें लाभ होगा। सुख मिलेगा।
परंतु समझने की बात यह है, कि केवल लिख देने से अथवा बोल देने से वैसा परिणाम नहीं होता, जब तक वैसी आपकी इच्छा न हो, वैसा आपका चिंतन वाणी व्यवहार न हो, वैसा आपका पुरुषार्थ न हो।
जैसे गुड़ मीठा होता है, मुझे गुड़ चाहिए इतना रटने मात्र से गुड़ नहीं मिल जाता। गुड़ को ढूंढना पड़ता है, लोगों से पूछना पड़ता है, कि गुड कहां मिलेगा? फिर उस गुड़ को प्राप्त करने के लिए पुरुषार्थ भी करना पड़ता है। तब कहीं जाकर गुड़ प्राप्त होता है।इसी प्रकार से केवल शुभ लाभ लिख देने मात्र से लाभ नहीं होता। बल्कि आपके मन की भावना भी लाभ प्राप्त की हो, आपके विचार भी अच्छे हों, लोगों के साथ आपका वाणी व्यवहार भी अच्छा हो, और आचरण भी अच्छा हो, तो लाभ होता है।” “इसलिए दरवाजों पर “शुभ लाभ” भले ही लिखें। परंतु साथ-साथ अपने वाणी विचार व्यवहार को भी शुद्ध करें, तभी आपको लाभ होगा, अन्यथा नहीं।
परंतु समझने की बात यह है, कि केवल लिख देने से अथवा बोल देने से वैसा परिणाम नहीं होता, जब तक वैसी आपकी इच्छा न हो, वैसा आपका चिंतन वाणी व्यवहार न हो, वैसा आपका पुरुषार्थ न हो।
जैसे गुड़ मीठा होता है, मुझे गुड़ चाहिए इतना रटने मात्र से गुड़ नहीं मिल जाता। गुड़ को ढूंढना पड़ता है, लोगों से पूछना पड़ता है, कि गुड कहां मिलेगा? फिर उस गुड़ को प्राप्त करने के लिए पुरुषार्थ भी करना पड़ता है। तब कहीं जाकर गुड़ प्राप्त होता है।इसी प्रकार से केवल शुभ लाभ लिख देने मात्र से लाभ नहीं होता। बल्कि आपके मन की भावना भी लाभ प्राप्त की हो, आपके विचार भी अच्छे हों, लोगों के साथ आपका वाणी व्यवहार भी अच्छा हो, और आचरण भी अच्छा हो, तो लाभ होता है।” “इसलिए दरवाजों पर “शुभ लाभ” भले ही लिखें। परंतु साथ-साथ अपने वाणी विचार व्यवहार को भी शुद्ध करें, तभी आपको लाभ होगा, अन्यथा नहीं।