बड़कोट :
यमुनोत्री धाम खरसाली गांव के श्री भूतेश्वर महादेव मंदिर में चल रही श्रीमद्भागवत कथा के पंचम दिवस की कथा गंगा में डुबकी लगाते हुए हिमालय के सुप्रसिद्ध भागवत कथा वाचक आचार्य शिवप्रसाद नौटियाल जी ने कहा हमारी सनातन परम्परा में मनुष्य के जीवन में धर्म मानव सभ्यता का मूल है।धर्म ही मनुष्य को क्रियाशील सहयोगी जीवन बिताने के लिए प्रोत्साहित करता है
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बड़कोट : यमुनोत्री धाम खरसाली गांव के श्री भूतेश्वर महादेव मंदिर में चल रही श्रीमद्भागवत कथा के पंचम दिवस की कथा गंगा में डुबकी लगाते हुए हिमालय के सुप्रसिद्ध भागवत कथा वाचक आचार्य शिवप्रसाद नौटियाल जी ने कहा हमारी सनातन परम्परा में मनुष्य के जीवन में धर्म मानव सभ्यता का मूल है।धर्म ही मनुष्य को क्रियाशील सहयोगी जीवन बिताने के लिए प्रोत्साहित करता है आचार्य श्री ने कहा दुर्लभो मानुषों देहो देहिनां क्षणभंगुर:। तत्रापि दुर्लभं मन्ये वैकुंठप्रियदर्शनं।। परमात्मा जब विशेष कृपा करते हैं तो मनुष्य शरीर मिलता है और दुर्लभ मानव शरीर क्षणभंगुर है ।एक क्षण में क्या होगा।बता नहीं सकते । और उसे भी सबसे दुर्लभ है आप जैसे बैकुंठनाथ भगवान के परम प्रेमियों का दर्शन होना , भागवत धर्म की पावन कथा को सुनाते हुए कहा है मनुष्य की जीवन की पूंजी संतुष्टि होती है ।जीवन में हर क्षण हर पल संतुष्ट रहना चाहिए । आचार्य श्री भागवत का सार बताते हुए कहा है कि आत्मा की कल्याण के लिए परमात्मा ने सबसे प्रथम जो उपदेश दिया उसे हम भागवत कहते हैं।भागवत धर्म आरंभ होता है विश्वास से।भागवत धर्म का मध्य होता है संबंध में ।भागवत धर्म का अंत होता समर्पण में परमात्मा के प्रति विश्वास पूरा करें परमात्मा से संबंध जोड़े परमात्मा के लिए सब कुछ समर्पित कर दे यही भागवत का सार हे।संपत्ति को संपत्ति नहीं कहते हैं ।और विपत्ति को विपत्ति नहीं कहते ।भगवान को भूल जाना सबसे बड़ी विपत्ति है ।और भगवान की हमेशा याद बनी रहे ।सबसे बड़ी संपत्ति है । आचार्य श्री ने कहा आज भारत को अध्यात्म,योग, गुरुकुल शिक्षा पद्धति से सम्पूर्ण मानवता का विकास सम्भव है। आचार्य श्री भगवान के नाम करण,बाल लीलाओं, मथुरा गमन आदि की पावन कथा सुनाते हुए कहा कि भगवान ने सम्पूर्ण लिलाएं यमुना जी के आंगन में की है और हम सभी लोग भी बड़े सौभाग्यशाली है कि मां यमुना जी के श्रीचरणों में कथा श्रवण करने का सौभाग्य प्राप्त हो रहा है। ये सौभाग्य हर किसी को नहीं मिलता पूर्वजन्मों के तप से हमें श्री यमुना जी का तट मिला है। यमुना जी के तट पर मनुष्य को सत्संग कथा मिल जाये तो उसकी बराबरी कोई नहीं कर सकता न स्वर्ग कर सकता है न मुक्ति कर सकती है। यह बात नितांत सत्य हैं। आचार्य श्री ने कहा दुर्योधन ने जीवन में सों दो बार भी कृष्ण का दर्शन नहीं किया था । शिशुपाल ने दश पांच बार भी श्रीकृष्ण का दर्शन नहीं किया था ।पर वे क्रोध को तो जीत नहीं सके । इसका बहुत सीधा सा मतलब है कि उन्हें भगवान का दर्शन तो मिला था। लेकिन भागवत कथा,सत्संग नहीं मिला। बिना सत्संग के जीव को मोक्ष नहीं मिल सकता। कथा के मुख्य यजमान श्रीमती सुषमा पंवार, भरत सिंह पंवार, अनुपम पंवार, समस्त पंवार बन्धु हजारों की संख्या में ग्राम व क्षेत्रवासी उपस्थित थे।
आचार्य श्री ने कहा दुर्लभो मानुषों देहो देहिनां क्षणभंगुर:। तत्रापि दुर्लभं मन्ये वैकुंठप्रियदर्शनं।। परमात्मा जब विशेष कृपा करते हैं तो मनुष्य शरीर मिलता है और दुर्लभ मानव शरीर क्षणभंगुर है ।एक क्षण में क्या होगा।बता नहीं सकते । और उसे भी सबसे दुर्लभ है आप जैसे बैकुंठनाथ भगवान के परम प्रेमियों का दर्शन होना , भागवत धर्म की पावन कथा को सुनाते हुए कहा है मनुष्य की जीवन की पूंजी संतुष्टि होती है ।जीवन में हर क्षण हर पल संतुष्ट रहना चाहिए । आचार्य श्री भागवत का सार बताते हुए कहा है कि आत्मा की कल्याण के लिए परमात्मा ने सबसे प्रथम जो उपदेश दिया उसे हम भागवत कहते हैं।
भागवत धर्म आरंभ होता है विश्वास से।भागवत धर्म का मध्य होता है संबंध में ।भागवत धर्म का अंत होता समर्पण में परमात्मा के प्रति विश्वास पूरा करें परमात्मा से संबंध जोड़े परमात्मा के लिए सब कुछ समर्पित कर दे यही भागवत का सार हे।संपत्ति को संपत्ति नहीं कहते हैं ।और विपत्ति को विपत्ति नहीं कहते ।भगवान को भूल जाना सबसे बड़ी विपत्ति है ।और भगवान की हमेशा याद बनी रहे ।सबसे बड़ी संपत्ति है । आचार्य श्री ने कहा आज भारत को अध्यात्म,योग, गुरुकुल शिक्षा पद्धति से सम्पूर्ण मानवता का विकास सम्भव है। आचार्य श्री भगवान के नाम करण,बाल लीलाओं, मथुरा गमन आदि की पावन कथा सुनाते हुए कहा कि भगवान ने सम्पूर्ण लिलाएं यमुना जी के आंगन में की है और हम सभी लोग भी बड़े सौभाग्यशाली है कि मां यमुना जी के श्रीचरणों में कथा श्रवण करने का सौभाग्य प्राप्त हो रहा है। ये सौभाग्य हर किसी को नहीं मिलता पूर्वजन्मों के तप से हमें श्री यमुना जी का तट मिला है। यमुना जी के तट पर मनुष्य को सत्संग कथा मिल जाये तो उसकी बराबरी कोई नहीं कर सकता न स्वर्ग कर सकता है न मुक्ति कर सकती है। यह बात नितांत सत्य हैं। आचार्य श्री ने कहा दुर्योधन ने जीवन में सों दो बार भी कृष्ण का दर्शन नहीं किया था । शिशुपाल ने दश पांच बार भी श्रीकृष्ण का दर्शन नहीं किया था ।पर वे क्रोध को तो जीत नहीं सके । इसका बहुत सीधा सा मतलब है कि उन्हें भगवान का दर्शन तो मिला था। लेकिन भागवत कथा,सत्संग नहीं मिला। बिना सत्संग के जीव को मोक्ष नहीं मिल सकता।
कथा के मुख्य यजमान श्रीमती सुषमा पंवार, भरत सिंह पंवार, अनुपम पंवार, समस्त पंवार बन्धु हजारों की संख्या में ग्राम व क्षेत्रवासी उपस्थित थे।