आचार्य लोकेश बडोनी मधुर
सम्पादक उत्तराखण्ड अब-तक न्यूज
देहरादून के चकराता के पास रामताल गार्डन ( चौलीथात) में 3 मई को हर वर्ष वीर केशरी चंद के बलिदान दिवस पर मेले का आयोजन किया जाता है।
आजादी की लड़ाई में उत्तराखंड के जौनसार के वीर सपूत केसरी चंद का नाम हमेशा सुनहरे अक्षरों में लिखा जाएगा। अमर शहीद वीर केसरी चंद का जन्म 1 नवंबर, 1920 को जौनसार के क्यावा गांव में हुआ था। उनकी प्रारंभिक शिक्षा विकासनगर में हुई थी। इसके बाद उन्होंने डीएवी कॉलेज में अपनी पढ़ाई जारी रखी।
केसरी चंद बचपन से ही साहसी व पराक्रमी और खेलों में उनकी विशेष रुचि थी। उनमें नेतृत्व का गुण और देशभक्ति की भावना कूट-कूट कर भरी हुई थी। कहा जाता है कि स्वतंत्रता आंदोलन के लिए उन्होंने कांग्रेस की बैठक और कार्यक्रमों में भी भाग लिया था।
केसरी चंद बचपन से ही साहसी व पराक्रमी और खेलों में उनकी विशेष रुचि थी। उनमें नेतृत्व का गुण और देशभक्ति की भावना कूट-कूट कर भरी हुई थी। कहा जाता है कि स्वतंत्रता आंदोलन के लिए उन्होंने कांग्रेस की बैठक और कार्यक्रमों में भी भाग लिया था।
इसी भावना के कारण वह 10 अप्रैल 1941 में रॉयल आर्मी सर्विस कॉर्प्स में भर्ती हो गए। उन दिनों द्वितीय विश्व युद्ध पूरे जोरों पर था। 29 अक्टूबर 1941 को केसरी चंद, मलाया की लड़ाई के मोर्चे पर तैनात किया गया। इस दौरान केसरी चंद को जापानी सेना ने बंदी बना लिया।
वह नेताजी सुभाष चंद्र बोस के नारे ” तुम मुझे खून दो , मैं तुम्हें आजादी दूंगा ‘ से प्रेरित होकर केसरी चंद आजाद हिंद सेना में भी शामिल हुए। उनके अदम्य साहस के कारण उन्हें जोखिम भरा कार्य सौंपा गया। इसके बाद इम्फाल में पुल को उड़ाने के प्रयास में केसरी चंद को अंग्रेजों ने पकड़ लिया और उन्हें दिल्ली की जिला जेल भेज दिया।
24 साल की उम्र में देश पर न्यौछावर किया जीवन
ब्रिटिश राज्य के खिलाफ साजिश के अपराध में केसरी चंद को मौत की सजा सुनाई गयी । तीन मई 1945 को महज 24 साल की उम्र में उत्तराखंड के इस वीर सेनानी को फांसी दे दी गई।
ब्रिटिश राज्य के खिलाफ साजिश के अपराध में केसरी चंद को मौत की सजा सुनाई गयी । तीन मई 1945 को महज 24 साल की उम्र में उत्तराखंड के इस वीर सेनानी को फांसी दे दी गई।
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आचार्य लोकेश बडोनी मधुरसम्पादक उत्तराखण्ड अब-तक न्यूज देहरादून के चकराता के पास रामताल गार्डन ( चौलीथात) में 3 मई को हर वर्ष वीर केशरी चंद के बलिदान दिवस पर मेले का आयोजन किया जाता है।आजादी की लड़ाई में उत्तराखंड के जौनसार के वीर सपूत केसरी चंद का नाम हमेशा सुनहरे अक्षरों में लिखा जाएगा। अमर शहीद वीर केसरी चंद का जन्म 1 नवंबर, 1920 को जौनसार के क्यावा गांव में हुआ था। उनकी प्रारंभिक शिक्षा विकासनगर में हुई थी। इसके बाद उन्होंने डीएवी कॉलेज में अपनी पढ़ाई जारी रखी।
केसरी चंद बचपन से ही साहसी व पराक्रमी और खेलों में उनकी विशेष रुचि थी। उनमें नेतृत्व का गुण और देशभक्ति की भावना कूट-कूट कर भरी हुई थी। कहा जाता है कि स्वतंत्रता आंदोलन के लिए उन्होंने कांग्रेस की बैठक और कार्यक्रमों में भी भाग लिया था।इसी भावना के कारण वह 10 अप्रैल 1941 में रॉयल आर्मी सर्विस कॉर्प्स में भर्ती हो गए। उन दिनों द्वितीय विश्व युद्ध पूरे जोरों पर था। 29 अक्टूबर 1941 को केसरी चंद, मलाया की लड़ाई के मोर्चे पर तैनात किया गया। इस दौरान केसरी चंद को जापानी सेना ने बंदी बना लिया।वह नेताजी सुभाष चंद्र बोस के नारे ” तुम मुझे खून दो , मैं तुम्हें आजादी दूंगा ‘ से प्रेरित होकर केसरी चंद आजाद हिंद सेना में भी शामिल हुए। उनके अदम्य साहस के कारण उन्हें जोखिम भरा कार्य सौंपा गया। इसके बाद इम्फाल में पुल को उड़ाने के प्रयास में केसरी चंद को अंग्रेजों ने पकड़ लिया और उन्हें दिल्ली की जिला जेल भेज दिया।24 साल की उम्र में देश पर न्यौछावर किया जीवन
ब्रिटिश राज्य के खिलाफ साजिश के अपराध में केसरी चंद को मौत की सजा सुनाई गयी । तीन मई 1945 को महज 24 साल की उम्र में उत्तराखंड के इस वीर सेनानी को फांसी दे दी गई।इनके सम्मान में जौनसार बावर ही नहीं देहरादून, गढ़वाल,हिमाचल के दूर दराज से हजारों लोग मेले में पहुंचते हैं। सरकार ने देहरादून के गांधी पार्क में वीर बलिदानी केसरी चंद्र की प्रतिमा को स्थापित किया है । मेले में शहीद केसरी चंद स्मारक समिति द्वारा सांस्कृतिक कार्यक्रम व किसानों व भगवानों में अच्छा कार्य करने वालों किसानों व समाजसेवीयों को भी सम्मानित करती है ।
जौनसार के लोक कलाकारों द्वारा वीर केसरी चंद पर कई गीतो की रचना भी की है।
इनके सम्मान में जौनसार बावर ही नहीं देहरादून, गढ़वाल,हिमाचल के दूर दराज से हजारों लोग मेले में पहुंचते हैं। सरकार ने देहरादून के गांधी पार्क में वीर बलिदानी केसरी चंद्र की प्रतिमा को स्थापित किया है । मेले में शहीद केसरी चंद स्मारक समिति द्वारा सांस्कृतिक कार्यक्रम व किसानों व भगवानों में अच्छा कार्य करने वालों किसानों व समाजसेवीयों को भी सम्मानित करती है ।
जौनसार के लोक कलाकारों द्वारा वीर केसरी चंद पर कई गीतो की रचना भी की है।
जौनसार के लोक कलाकारों द्वारा वीर केसरी चंद पर कई गीतो की रचना भी की है।