मैं लोगो से सुनता भी हूं और समाज में देखता भी हूं, कि शादी विवाह में लोग अपनी हैसियत से अधिक खर्चा करते हैं,हालांकि सभी नही करते होंगे,कुछ लोग काफी अमीर होते हैं लेकिन जो मध्यम वर्ग के परिवार है वो लोग भारी कर्जा करके बेटे या बेटी का विवाह संपन्न करते है,और कर्जा इसलिए करना पड़ता है क्यूंकि अधिकतर चींजे समय के साथ शादी विवाह में जबरदस्ती लोगो ने ग्रहण कर ली,जैसे मेंहदी अब एक मुख्य उत्सव सा हो गया,मेंहदी में शराब ,मांस,तमाम तरह के सलाद,नमकीन,सहित कई फास्ट फूड परोसे जाते हैं, जबकि यदि व्यक्ति शराब न भी बांटे, मीट न भी पकाएं,और कई तरह के सलाद,फास्ट फूड न भी बनाए तो बहुत अधिक फर्क नहीं पड़ता बल्कि शराब न पिलाने से शादी का माहौल अधिक खुशनुमा रह सकता है,वैसे ही मंगल स्नान में सबकी पीली ड्रेस,दूल्हा या दुल्हन को एक टबनुमा पात्र में नहलाना,कई लोग तो बियर तक हल्दी जैसे पवित्र रस्म पर दूल्हा या दुल्हन पर उड़ेलने लगे है।उसके अलावा एक रिवाज और ग्रहण कर लिया कि एक आदमी घर के अंदर की रसोई संभालेगा,और घर की बेटी बहू,बेटे आदि अपनी मस्ती में मस्त,जिन रिश्तेदारों को आत्मीयता से मिला जाना चाहिए,जिनको कम से कम सही से चाय पानी भोजन हेतु घर के लोगो को पूछना चाहिए उनको पानी तक बाहर का व्यक्ति पिला रहा है,घर के बच्चे,बेटी , बहू,बेटे सिर्फ नाच गाने में मस्त उन्हे भाई बंधुओ रिश्तेदारों से बहुत अधिक मतलब नहीं रहने लगा है,जबकि पहले होता क्या था कोई भाई बंधु रिश्तेदार जब किसी शादी विवाह आदि में पहुंचता उसे आत्मीयता से मिला जाता था,आज घर की बहुएं सास ससुर,जेठ,देवर,मामा ससुर आदि किसी के भी सामने सिर्फ अपने नाच गाने तक सीमित हो रही है,जिसके लिए हम सभी जिम्मेदार हैं, कम से कम हमारी पहाड़ी संस्कृति रीति रिवाजों में ऐसा नही था,पहले सास ससुर,जेठ,मामा ससुर आदि रिश्तों को बड़ी इज्जत मिलती थी,अब सभी कुछ टीवी सीरियलों के हिसाब से होने लगा है, अपने रीति रिवाज वार त्योहार यहां तक कि अपने देवी देवताओं की अनदेखी करने लगे है और बाहरी संस्कृति,बाहरी रीति रिवाजों को अपनाकर अपना बड़ा नाम समझ रहे है।शादी विवाह अब पंडित जी के मंत्रोचार,गोत्रोचार को सुनने के बजाय,बेटी बहू के मनपसंद गीतों पर नाचने गाने को प्रमुखता मिलने लगी है,पता नही विवाह जैसे पवित्र वंदन के शुभ अवसरों पर हम लोग क्यों अपने पैतृक,पौराणिक और प्रमाणिक रिवाजों को भूल रहे हैं,विवाह संस्कार को सही से कराने के बजाय,शराब पिलाने,बेटी बहू ,बच्चों द्वारा उटपटांग गीतों पर नाचने को प्रमुखता मिलने लगी है,इसलिए शायद बूढ़े बड़े बुजुर्ग शादी विवाह में जाने से कतराने लगे हैं,टीवी सीरियलों की देखादेखी और दूसरों को दिखावें के चक्कर में अपनी मान मर्यादा,अपने रीति रिवाज भूलते जा रहे हैं,साथ ही बेवजह का कर्जा भी दिखावे के चक्कर में दूल्हा दुल्हन के माता पिता पर बढ़ जाता है,हम पहाड़ियों को कम से दिखावे के बजाय शादी विवाह जैसे पवित्र अवसर पर अपने रीति रिवाजों संस्कारों को नही भूलना चाहिए,हम आधुनिक बने अच्छी बात है पर हम अपने महान पुरखों के महान रीति रिवाजों संस्कारों को न भूलें, इस दिशा में यमुना घाटी के नौगांव ब्लॉक गढ़ खाटल, जौनसार क्षेत्र में समाज सेवियों ने पहल की थी जो भी विवाह सादी में सराब मांस परोसेगा उसका गांव में बहिष्कार होना चाहिए।इस दिशा में कुछ परिवर्तन देखने को भी मिला है। परन्तु उनके ग्रामीणों द्वारा कोई ठोस कार्रवाई नहीं की गई,इस दिशा में मातृशक्ति यदि अपनी आवाज को बुलंद करें तो क्रांतिकारी बदलाव परिवर्तन देखने को मिल सकता है। सभी समाज सेवियों,दान सयाणों, मातृ शक्ति से आग्रह करता हूं विवाह जैसे पवित्र वंदन में शराब,मांस,दहेज जैसी कुरूतियों के खिलाफ आवाज उठातें रहें ।