- सम्पादकीय
लोगों का मनोविज्ञान ऐसा देखा जाता है, कि अधिकतर व्यक्ति लोभ के कारण वस्तुएं तो बहुत इकट्ठी करते जाते हैं, परंतु उनका उपभोग बहुत कम कर पाते हैं। उनका सुख बहुत कम ले पाते हैं।”* वे बस इसी बात में खुश रहते हैं, कि । मेरे पास इतनी संपत्ति है। इतने कपड़े हैं। इतने बिस्तर हैं। इतने बर्तन हैं। इतने आभूषण हैं। इतने जूते चप्पल हैं। इतना यह कुछ है।”* बस इन वस्तुओं के संग्रह में ही संतुष्ट रहते हैं। इन वस्तुओं का सुख नहीं ले पाते।
यदि इन वस्तुओं का सुख भी लेते, तब तो इनका संग्रह करना ठीक था। *”परन्तु अधिकांश लोग न तो इन वस्तुओं का सुख स्वयं लेते, और न ही किसी दूसरे जरूरतमंद को दान में देते। बस, वस्तुओं का संग्रह ही करते रहते हैं।” “और जब संसार से जाते हैं, तब बहुत सारा सामान दूसरों के लिए छोड़कर जाते हैं। वह सामान भी वे लोग छोड़ना नहीं चाहते। ‘परंतु साथ में ले जा नहीं सकते’, इसलिए मजबूरन यहीं छूट जाता है। तब वह सारा सामान, जो जीवन भर इकट्ठा किया था, उसे छोड़ने में उन्हें बहुत कष्ट भी होता है।
वेदों और ऋषियों की दृष्टि में यह कार्य उचित नहीं है। वेदों और ऋषियों का कहना यह है, कि *”थोड़ा सामान रखें और उसका लाभ लेवें। सामान भले ही कम हो, परंतु उसका प्रयोग अवश्य करें। तभी वस्तुओं का संग्रह करना सार्थक है, अन्यथा व्यर्थ है।” “यदि कभी किसी कारण से धन या सामान अधिक आ भी जाए, तो उसे अन्य जरूरतमंद लोगों को बांट देवें, जिससे कि उस धन और सामान का सदुपयोग हो सके।