सम्पादकीय
उत्तराखंड अब-तक न्यूज
हमारी पुरानी भारतीय परंपरा में संयुक्त परिवार होते थे। घर में चार बेटे, चार बहुएं, 8/10 बच्चे, माता पिता, दादा दादी आदि सब लोग साथ में रहते थे। *”तब परिवार में संगठन प्रेम अनुशासन बड़ों का आदर सम्मान आदि होता था। एक दूसरे के लिए त्याग और सेवा की भावना बनी रहती थी, और सब मिल कर आनन्द से रहते थे।”*
फिर कुछ समय से कुछ लोग विदेशी पद्धति को अपनाने लगे, कि *”विवाह करते ही परिवार से अलग हो जाओ। अपना पैसे कमाओ खाओ पीओ नाचो गाओ और सो जाओ।” “जब से लोगों में ऐसी स्वार्थ की प्रवृत्ति बढ़ गई, तब से लोगों के जीवन में से सुख शांति आनन्द प्रेम त्याग सहिष्णुता आदि सब उत्तम वस्तुएं निकल गई।”*
*”अब परिवार से अलग होने पर विवाहित पति पत्नी को जीवन का अनुभव कम होने से, और माता-पिता साथ में न होने से, उनका मार्गदर्शन और सहयोग उचित समय पर न मिलने से, उन्हें अनेक कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है।”* उधर माता पिता भी वृद्ध हो गए हैं। *”उनको भी बेटे बहू का सहयोग न मिल पाने से, वे अलग दुखी होते हैं। उनको कोई भोजन बनाकर देने वाला, कपड़े धोने बर्तन साफ करने वाला, घर की देखभाल सुरक्षा करने वाला, रोगी होने पर दवाई चिकित्सा कराने वाला, सत्संग आदि में ले जाने और वापस घर लाने वाला, कोई पास में बैठकर प्रेम से दो बात करने वाला और उनकी सेवा करने वाला व्यक्ति मिलता नहीं।” “इस प्रकार से माता-पिता और बच्चे दोनों अपने अपने क्षेत्र में दुखी रहते हैं।”*
*”यदि पहले की तरह से संगठित होते, संयुक्त परिवार में रहते, तो दोनों को एक दूसरे से सुख दुख में सहयोग मिलता, और घर परिवार में संगठन सुरक्षा अनुशासन सभ्यता और आनन्द बना रहता।”*
*”क्योंकि जब लोग इकट्ठे मिलकर रहते हैं, और घर में कोई खुशी का अवसर आता है, तो सबका सुख बढ़ जाता है। यदि कोई समस्या या दुख आ जाए, तो वह दुख सब लोगों में बंट जाता है, और कम परेशान करता है।”*
*”इसलिए संयुक्त परिवार में रहना ही अधिक लाभदायक सुरक्षित बुद्धिमत्तापूर्ण एवं सुखदायक है।” “आशा है, इन बातों पर गंभीरता से विचार करेंगे, और संयुक्त परिवार की परंपरा को समाज में पुनः लागू करेंगे।